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इतिहास

दीव का किलादीव जिला का लिखित इतिहास मौर्य काल (322-220 ई.पू.) से आरंभ होता है। सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य ने पश्चिम भारत में सौराष्ट्र तक अपने साम्राज्य का विस्तार कर जुनागढ़ के निकट स्थित गिरनार को अपना मुख्यालय बनाया तथा शासन की देखरेख के लिए पुष्यगुप्त वैश्य को सौराष्ट्र प्रांत का राज्यपाल नियुक्त किया । कालांतर में सम्राट अशोक (273-237 ई.पू.) के राज्यपाल के रूप में यवनराज तुशप्प ने पूरे सौराष्ट्र पर शासन किया । सम्राट अशोक ने धम्मरखितो नाम के यवन थिरो को पश्चिमी समुद्र तट की ओर जिसमें दीव भी शामिल था, धर्मप्रचारक के रूप में भेजा था । ऐसा प्रतीत होता है कि उनके पोते सम्प्रति (229-220 ई.पू.) ने उज्जैन से पूरे सौराष्ट्र पर शासन किया । उन्होंने जैन धर्म का प्रचार किया और अपने शासनकाल में कई जैन मंदिर भी बनवाए । ऐसा लगता है कि दीव में जैन परंपरा की शुरूआत इसी अवधि में हुई ।

नुनो दे कुन्हाऐसा प्रतीत होता है कि यह जिला पहली सदी ईसा पूर्व से लेकर लगभग 50 ई. तक इंडो-ग्रीक शासक यूक्रेटिड्स (171-150 ई.पू.),  मीनांडर (115- 90 ई.पू.) और अपोलोडोटस-II के शासन में रहा है ।  पहली सदी के दौरान, यह जिला क्षहरातों द्वारा शासित किया गया, जिन्होंने सौराष्ट्र सहित भारत के पश्चिमी भाग पर अपना शासन स्थापित किया था । अगले एक हजार से अधिक वर्षों तक, दीव अनेक राजवंशों के राज्यों का हिस्सा बना, जिन्होंने गुजरात सहित पश्चिमी भारत पर शासन किया । सोमनाथ पाटन पर शासन करने वाले वजा राजवंश के अंतिम शासक ने पंद्रहवीं सदी के पहले दशक में दीव पर शासन किया । इसके बाद, दीव गुजरात के मुस्लिम सुल्तानों के नियंत्रण में आया, जिन्होंने अगले डेढ़ सदी तक दीव पर शासन किया।

1535 के प्रारंभ में पुर्तगाली गवर्नर नूनो-डी-कून्हा ने दीव को अपने कब्जे में करने का प्रयास किया परन्तु सुल्तान द्वारा उसे मुंह की खानी पड़ी । तथापि, इस पूरी अवधि में, गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह का शासन मुगल आक्रमणों से बुरी तरह प्रभावित होता रहा । एक तरफ से मुगल शासक हुमायूं द्वारा और दूसरी ओर से पुर्तगालियों द्वारा दबाए जाने के कारण विवश होकर बहादुर शाह ने 25 अक्टूबर 1535 को नूनो-डी-कून्हा के साथ एक संधि की । संधि के अनुसार पुर्तगाली भूमि और समुद्र की ओर से बहादुर शाह पर हमला करने की स्थिति में उसका साथ देने के लिए राजी हुए । बदले में उन्हें दीव में बंदरगाह के एक ओर किला निर्माण की अनुमति प्राप्त हुई । मुग़ल खतरे को कम करने के बाद, गुजरात के शाह को अपनी गलती का एहसास हुआ कि उन्होंने पुर्तगालियों को किले का निर्माण करने की इजाजत देकर बड़ी भूल की   है । अंततः पुर्तगालियों ने 1546 में दीव को अपने कब्जे में कर लिया था और 1961 तक यहां शासन किया ।

19 दिसंबर, 1961 को पुर्तगाली शासन से मुक्ति के बाद गोवा, दमण एवं दीव संघ प्रदेश के रूप में भारत सरकार का अंग बने । 30 मई 1987 को गोवा के राज्य बनने के बाद, दमण और दीव एक अलग संघ प्रदेश बने ।